एक नन्ही परी भाग ५
By Digital Life दूसरे समाज के श्मशान घाट में अंतिम संस्कार करें. मुन्नी को जिद करता देख कुछ लोगों ने उसको समझाया कि बेटा हम उस (आदिवासी पिछड़े दलित) समाज से आते हैं जिस समाज को जीने का अधिकार है लेकिन साथ खड़े रहने का नहीं मरने का अधिकार है पर एक श्मशान घाट में (दाह संस्कार) अंतिम संस्कार का नहीं! हमारा संविधान हम लोगों को यह अधिकार तो देता है पर जाति धर्म के ठेकेदारों के हाथ की कठपुतली सा रह गया है! अब मुन्नी को यह समझ में आने लगा कि हमारे समाज को और उजागर करने की जरूरत है और उनका संरक्षण सुनिश्चित करेगी और पिछले समाज को शिक्षा और रोजगार अपने बलबूते पर दिलाएगी... उसने ठान ली की वह आगे की पढ़ाई जारी रखेगी और अपने समाज के लिए अच्छे से अच्छी व्यवस्था करेगी जिससे कि उसके समाज में पढ़े लिखे लोगों की तादाद बड़े (प्रोग्रेस)जिससे कि उनके अधिकारों का कोई हनन ना कर सके उनको यह मालूम होगा कि उनका अधिकार क्या क्या है... ( वहीं से मुन्नी को कुछ कर दिखाने का जज्बा पैदा हुआ ) ...